भारत की रहस्यमई दुनिया | Rahasya

इस दुनिया में ऐसे बहुत से लोग होते हैं जिन्हें घूमना बहुत पसंद है। इसके अलावा ऐसे भी लोग होते हैं जो अलग-अलग जगहों पर जाकर वहां की विशेषताओं और कल्चर के rahasya बारे में जानकारी जुटाना, उन्हें करीब से जानना पसंद करते हैं। बात की जाए घूमने की तो हम हमेशा ऐसी ही जगह पर घूमना पसंद करते हैं जो अन्य जगहों से हट कर हो। आज हम आपको भारत में मौजूद ऐसी ही अद्भुत, अविश्वस्नीय और अकल्पनीय जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में आपको शायद ही पहले पता हो। हमारे साथ अंत तक बने रहिए।

भारत की रहस्यमई दुनिया | Rahasya

रूपखण्ड लेक (चमोली, उत्तराखण्ड)

फ्रेंड्स उत्तराखण्ड अपनी प्राकृतिक वादियों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां की सुंदरता को हर कोई अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहता है। इसीलिए यहां पर दूर दराज से लोग हर साल हजारों की संख्या में आते हैं। क्या आप जानते हैं, इस खूबसूरत वादियों वाले उत्तराखण्ड में एक ऐसी जगह भी है जो रोमांच और रहस्य rahasya से भरी हुई है। इस जगह का नाम है रूपखण्ड लेक

चलिए इसके बारे में आपको थोड़ी जानकारी दे दें। यह एक ऐसी झील है दोस्तों, जो 16,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर निवास करना किसी के लिए भी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। गर्मियों के दिनों में जब यहां जमी बर्फ पिघलती है तो आप इस ताल की तलहटी में मौजूद करीब 600 नर कंकालों को देख पाएंगे। इस झील को कंकालों वाली झील या रहस्यमई rahasya झील के नाम से भी जाना जाता है।

यह झील बनी है त्रिशूली पर्वत की गोद में और जुरांगली पहाड़ी के नीचे। इस झील के रहस्य को लेकर कई लोक कथाएं प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि कैलाश जाते समय मांता नंदा को बहुत अधिक प्यास लगी। तब उन्होंने भगवान शिव को इसके बारे में बताया। इसके बाद भगवान शिव ने अपना त्रिशूल यहां पर फेंका। इससे वहां पर पानी निकल आया। जब पानी पीते समय माता ने इसमें अपना चेहरा देखा तो यह कुंड उन्हें भा गया। इसी कारण इस कुंड को रूप कुंड का नाम मिला।

इस झील के रहस्यों rahasya का जिक्र यहां के लोकगीतों और जागरों में भी निहित है। स्थानीय लोग यहां पर पूजा अर्चना करते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टिमी के दिन तो वाड़ गांव के लोग सुबह-सुबह ही अपने गांव से यहां आने के लिए निकल पड़ते हैं। यह गांव यहां का अंतिम गांव है। इस गांव से इस कुंड तक का सफर मीलों दूर है। फिर भी श्रद्धा के आगे सारे दुख दर्द झेलते हुए ये लोग यहां पर आकर मां नंदा की पूजा करते हैं। इस पूजा में बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल होते हैं। यहां पर उत्तराखण्ड का राज्य पुष्प्प ब्रह्मकमल भी यहां अधिक मिलता है।

रूप कुंड की एक और कथा प्रचलित है। कहते हैं कि एक बार मां नंदा के दोष के कारण कन्नौज में भयंकर आकाल पड़ा। तब राजा यश धवल ने नंदा देवी को मनाने का प्रयास किया। उन्होंने नंदा देवी राजजात के लिए दल बल के साथ प्रस्थान किया। इस धार्मिक यात्रा के बीच जिन नियमों का पालन करना चाहिए था राजा ने उन नियमों का पालन नहीं किया। राजा अपनी गर्भवति रानी और दासियों के साथ इस रूपकुण्ड में पहुंचे। नंदा देवी नाराज थीं। इनके प्रभाव से रास्ते में अचानक तेज़् बारिश होने लगी। राजा अपने परिवार सहित उस बर्फीले तूफान में फंस चुके थे। सभी दब कर मर गए। लोगों का एसा मानना है कि 70 वर्षों के बाद भी यहां से उन्हीं राजा और उसके दल बल के नर कंकाल प्राप्त हो रहे हैं।

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जातिंगा rahasya

दोस्तों, यह असम में बसा एक खूबसूरत गांव है जो यहां की बोरेल पहाड़ियों की तलहटी पर स्थित है। इस गांव में एक रहस्यमई rahasya घटना होती है जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे। पर्यटकों को भी यह बात काफी ज़्यादा उत्साहित करती है कि आखिर ऐसा हो कैसे सकते है। चलिए रहस्य से पर्दा उठाते हैं और आपको बताते हैं इसके बारे में। दरअसल, ऐसा माना जाता है कि इस गांव में विभिन्न प्रकार के पक्षी सुसाइड कर लेते हैं। ऐसा हर वर्ष यहां के स्थानीय निवासियों को देखने को मिलता है। हालांकि, ऐसा क्यों होता है इसकी ठोस वजह की तलाश आज तक पूरी नहीं हो पाई है। यहां पर एक जनताती रहती थी जिसका नाम था जीवी जनताति।

कहते हैं यही वो लोग थे जिन्होंने सबसे पहले इस घटना को देखा था। इन्होंने देखा कि पक्षी आसमान से नीचे की ओर बढ़ रहे थे। वो वहां के लंबे पेड़ों से या बांसों से टकराकर नीचे गिर जाते थे। इनमें से अधिकतर की मौत हो गई थी। कहते हैं यह घटना आज भी होती है। ऐसा सितम्बर और नवम्बर के आखिरी दिनों में होने वाली घटना है। इस जनजाति के लोगों ने इस घटना को भगवान का प्रकोप मानकर वहां से पलायन कर लिया। इसके बाद एक और जनताति यहां पर रहने लगी। इस जनजाति के लोगों ने यहां पर यही दृश्य देखा। एसा उन्होंने तब देखा जब वे रात के समय अपने खोए हुए पशुओं को ढूंढने के लिए गए। इन लोगों ने देखा कि रात के समय पक्षी जमीन पर गिर रहे हैं। इन्होंने इस घटना को ईश्वर का वरदान माना।

शेत्पाल, महाराष्ट्र

जरा सोचिए, क्या हो अगर आपके सामने कोबरा सांप आ जाए। आपकी हालत क्या होगी? क्यों, सोच कर ही पसीना आने लगा ना। दोस्तों, आपने बहुत से ऐसे लोग देखे होंगे जो अपने घरों में कुत्तों को पालते हैं। कुत्ता एक पाल्तु और वफादार जानवर होता है। लेकिन क्या आपने कभी इस बात की कल्पना की है कि कोई कोबरा को भी अपने घर में पाल सकता है। आज हम आपको ऐसे ही एक गांव के बारे में चैकाने वाले तथ्य rahasya बताने वाले हैं। शेत्पाल गांव जो कि महाराष्ट्र में स्थित है।

यहां पर लोग अपने घरों में कुत्ते नहीं बल्कि सांप पालते हैं। सांप भी कोई छोटा-मोटा नहीं, किंग कोबरा। कोबरा को सबसे अधिक विषैला सांप माना जाता है। यहां पर लोग इन कोबरा तथा अन्य सांपों को बिना किसी लालच के पालते हैं। यहां हर घर में आपको कोबरा देखने को मिल जाएगा। यहां खासतौर पर सांपों की पूजा की जाती है। यहां के लोग सांपों को शुभ और सुख समृद्धि का कारण भी मानते हैं। स्थानीय निवासी सांपों को ही अपना देवता मानते हैं। यहां सांपों के लिए कई सारे विशेष मंदिर भी देखने को मिलते हैं। यह हैरान कर देने वाली और न पचने वाली बात है। इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि इस जगह कभी भी किसी ने भी सांप को मारा नहीं है। शायद इसीलिए सांपों ने इन्हें आज तक कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। इतना ही नहीं, इस गांव में तो बच्चे भी सांपों के साथ ऐसे खेलते हैं जैसे कोई खिलौना हो।

लेपाक्षी, आंध्रप्रदेश

चलिए अब आपको लेकर चलते हैं आंद्रप्रदेश। यहां के लोपाक्षी नामक स्थान पर वैसे तो कई सारे प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। परंतु आज हम जिस मंदिर के बारे में आपको बताने वाले हैं वो बेहद खास है। दरअसल लेपाक्षी आंद्रप्रदेश के अनंतपुर में बसा एक छोटा सा गांव है। यहां पर एक पौराणिक मान्यता है। कहते हैं कि यह वही जगह है जहां पर सीता हरण के समय रावण से युद्ध के दौरान जटायु घायल होकर गिरा था। यह गांव उस कलात्मक लेपाक्षी मंदिर के लिए जाना जाता है जो यहां 16वीं शताब्दी में बना था। इस विशालकाय मंदिर में आपको भगवान शिव, भगवान वीरभद्र और भगवान विष्णु की मूर्तियां देखने को मिलेगी। यहां पर इन तीनों देवताओं को समर्पित तीन मंदिर हैं।

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इस मंदिर को हैंगिग पिलर टेम्पल के नाम से भी लोग जानते हैं। इस मंदिर की नींव 70 खंभों पर रखी गई है और इनमें से एक खंभा हवा में ही है जो यहां का मुख्य आकर्षण का केंद्र है। कहते हैं कि इसके नीचे से कपड़ा निकालने से सुख और समृद्धि बढ़ जाती है। इस मंदिर का निर्माण दो भाइयों वीरूपन्ना और वीरन्ना के द्वारा 1583 में किया गया था। ये दोनों भाई विजयनगर के राजा के यहां काम करते थे। पौराणिक मान्यता है कि यहां के वीरभद्र मंदिर को ऋषि अगस्त्य ने बनवाया था। कहते हैं कि जब रावण से युद्ध के बाद जटायु घायल होकर यहां पर गिरा और भगवान राम जब यहां पहुंचे तो उन्होंने जटायु को देखकर ‘ले पाक्षी’ कहा था। यह एक तेलगू शब्द है। इसका अर्थ है ‘उठो पक्षी’। कहते हैं तभी से इस मंदिर का नाम लेपाक्षी पड़ गया। कुछ लोगों का दावा यह भी है कि इस जगह पर आज भी सीता माता के पैरों के निशान मौजूद हैं। हालांकि यह दावा कितना सच है इसपर इतिहासकार रिसर्च कर रहे हैं।

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